SC: फाइनल ईयर की परीक्षाओं के बिना नहीं कर सकते छात्रों को प्रमोट, पढ़िए फैसले से जुड़ी कुछ अहम बातें

By Career Keeda | Aug 31, 2020

कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन की वजह से एक तरफ जहां सभी कॉलेज और यूनिवर्सिटी के फर्स्ट और सेकंड ईयर के स्टूडेंट्स की बल्ले-बल्ले हो गई वह ऐसे कि उन्हें फाइनल परीक्षा नहीं देनी होंगी क्योंकि उन्हें इंटरनल एसेसमेंट और उनके द्वारा दी गई लास्ट परीक्षा के परिणामों के आधार पर ही उन्हें प्रमोट कर दिया जाएगा तो वहीं दूसरी तरफ फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स बीच मझधार में फंसे थे कि क्या उन्हें भी प्रमोट किया जाएगा? क्या उनकी परीक्षाएं होंगी और अगर होंगे तो कब? अंतिम वर्ष के छात्रों और उनके अभिभावकों को इस दुविधा से निकालते हुए और और उनकी शंकाओं को दूर करते हुए 28 अगस्त शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपना फैसला दिया जिसमें उसने उसने कहा, "बिना अंतिम वर्ष की परीक्षा हुए छात्रों को प्रमोट नहीं किया जा सकता।" पढ़िए फैसले से जुड़ी कुछ अहम बातें।

1.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य और विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षा दिए बिना छात्रों को प्रमोट नहीं कर सकते। हालांकि, अदालत ने कहा कि अगर युनिवर्सिटी, राज्य या कॉलेजों को परीक्षा आयोजित कराने में किसी तरह की समस्या हो रही है तो वे  परीक्षा आयोजित करने की समय सीमा को बढ़ाने के लिए UGC से संपर्क कर सकते हैं।

2. अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने UGC को अंतिम वर्ष कि परीक्षाएं 30 सितंबर तक आयोजित कराने का फैसला दिया। अंतिम सेमेस्टर / वर्ष के छात्रों को अंतिम परीक्षा के बिना पदोन्नत नहीं किया जा सकता है।

3.पिछले सेमेस्टर / वर्ष के परिणामों के आधार पर अंतिम वर्ष के छात्रों को प्रमोशन देने के लिए राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों द्वारा लिया गया निर्णय और आंतरिक आकलन DM अधिनियम के तहत अधिकार क्षेत्र / शक्तियों से परे है।

4.आयोग ने शीर्ष अदालत से कहा था कि उसके निर्देश, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को COVID-19 महामारी के बीच 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने के लिए कहते है। लेकिन राज्य परीक्षा आयोजित किए बिना फैसला लेने का निर्णय नहीं ले सकते है।

5.UGC के 6 जुलाई के दिशानिर्देशों को रद्द करने से इनकार करते हुए, अदालत ने यह भी कहा कि अगर किसी भी राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने स्थिति को देखते हुए परीक्षा स्थगित करने का फैसला किया है, तो वह प्रबल होगा।

6.UGC ने पहले कहा था कि 6 जुलाई के दिशानिर्देश विशेषज्ञों की सिफारिशों पर आधारित हैं और नियत विचार-विमर्श के बाद बनाए गए हैं और यह दावा करना गलत है कि दिशानिर्देशों के संदर्भ में अंतिम परीक्षा आयोजित करना संभव नहीं होगा।

7.हालांकि, अंतिम वर्ष की परीक्षाओं का आयोजन किए बिना डिग्री प्रदान करने के लिए, शीर्ष अदालत ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती। इसलिए, राज्य सरकार परीक्षा रद्द कर सकती है पर परीक्षाओं के बिना छात्रों को प्रमोट करने का निर्णय नहीं ले सकती है।

8. इस मामले में आखरी सुनवाई 18 अगस्त को हुई थी जिसमें UGC ने कहा कि राज्यों को परीक्षा रद्द करने का अधिकार नहीं है।चूंकि यूजीसी द्वारा डिग्री प्रदान की जाती है, इसलिए यह तर्क दिया गया था कि क़ानून के अनुसार, यूजीसी परीक्षाओं का आदेश देने के अधिकार में है। तब SC ने सभी दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

9.अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द करने के लिए महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे कुछ राज्यों के फैसलों का विरोध करते हुए, UGC ने कहा था कि इस तरह के फैसले सीधे उच्च शिक्षा के मानकों को प्रभावित करते है।

10.UGC ने 6 जुलाई को संशोधित दिशा निर्देश जारी किए थे जिसमें उसने सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा कराने के लिए कहा था, उस आदेश के खिलाफ विभिन्न विश्वविद्यालयों के 31 छात्रों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

11.UGC ने विश्वविद्यालयों को कहा था की वह फाइनल ईयर की परीक्षाएं ऑनलाइन, पैन पेपर या ब्लेंड मोड अर्थात दोनों माध्यमों के जरिए करा सकते है। गाइडलाइन्स में ये भी बताया गया है कि बैक-लॉग वाले छात्रों को परीक्षाएं अनिवार्य रूप से देनी होंगी।

12.UGC ने यह भी बताया कि जो स्टूडेंट्स किसी भी वजह से सितंबर में आयोजित अंतिम वर्ष की परीक्षा नहीं दे पाएंगे विश्वविद्यालय उन छात्रों के लिए विशेष परीक्षा आयोजित कराएंगे जिससे छात्रों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव या असुविधा ना हो।