पढ़िए 5 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस और पहले से अब कितना बदल गया है गुरु-शिष्य का रिश्ता

By Career Keeda | Sep 04, 2020

भारत में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस जिसे टीचर्स डे भी कहते हैं बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन को बेहद ही खास माना जाता है क्योंकि यह गुरु-शिष्य का दिन होता है, इस दिन शिष्य अपनी जिंदगी में अपने गुरु के अतुल्य योगदान को सम्मान देता है और अपने भगवान जैसे शिक्षक का आशीर्वाद लेता है। कहां जाता है कि एक व्यक्ति की जिंदगी में गुरु का एक अलग ही महत्व होता है उसका दर्जा सबसे ऊपर होता है भगवान के बराबर हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि माता-पिता सिर्फ बच्चे को जन्म देते हैं परंतु शिक्षक उस बच्चे के भविष्य को संवारने का काम करता है, उसे उसके मंजिल तक पहुंचाने का मार्ग प्रशिक्षित करता है, उसके भविष्य के चित्रण का वर्णन करता है और इंसान को कामयाब बनाने की शिक्षा सिर्फ गुरु ही देता है। एक शिक्षक बिन छात्र के भविष्य की कल्पना भी नहीं की जाती है, वह गुरु के बिना अधूरा होता है। शिक्षक सिर्फ स्कूल, कॉलेज विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाला गुरु ही नहीं होता बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाले को भी गुरु कहा जाता है, जिंदगी के हर मोड़ पर जब आप किसी से कुछ सीखते हैं तो वह आपके लिए गुरु के समान है। शिक्षकों के योगदान के सम्मान में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों हर साल 5 सितंबर को ही शिक्षक दिवस मनाते हैं? एक शिक्षक का अपने शिष्य के जीवन में क्या महत्व होता है? और पहले से अब गुरु और शिष्य के रिश्ते में कितना बदलाव आया है? आपके इन सब सवालों का जवाब आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में बताएंगे।

क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस? 

हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में मनाया जाता हैं। वह स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति, दूसरे राष्ट्रपति, महान और विद्वान शिक्षक, महान दार्शनिक, स्कॉलर और राजनेता थे। उन्होंने अपने जीवन के 40 अमूल्य वर्ष शिक्षक के रूप में बिताए। उनका जन्म 5 सितंबर 1888 में तमिलनाडु के एक छोटे से गांव तिरुनमी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। शिक्षा और देश के लिए उनके अतुल्य योगदान के लिए 1954 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया था।5 सितंबर को टीचर्स डे मनाने के पीछे भी एक किस्सा है कहां जाता है जब वह सन् 1962 में भारत के राष्ट्रपति बने तब उनके जन्मदिन यानी 5 सितंबर को कुछ छात्र उनसे मिलने पहुंचे और उनके जन्मदिन को मनाने की इच्छा व्यक्त की, यह सुनकर राधाकृष्णन बड़े खुश हुए लेकिन उन्होंने उनसे कहा, मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आप मेरा दिल जन्मदिन मनाना चाहते हैं पर अगर आप इस खास दिन को शिक्षकों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान और समर्पण को सम्मानित करते हुए मनाएंगे तो मुझे अत्यंत खुशी और गौरव का अनुभव होगा। उनकी इसी बात और इच्छा रखते हुए 1962 से 5 सितंबर पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

कैसे मनाया जाता है शिक्षक दिवस? 

पूरे भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस जिसे टीचर्स डे भी कहते हैं बड़ी धूमधाम हर्षोल्लास से मनाया जाता है।स्कूल, कॉलेज, शैक्षिक संस्थान और सभी विश्वविद्यालयों में इस दिन पढ़ाई नहीं होती बल्कि चारों तरफ खुशियों का माहौल होता है, रंगारंग कार्यक्रम होते हैं। सभी छात्र अपने शिक्षकों को सम्मान देते हैं, उनका आशीर्वाद लेते हैं, अपने पसंदीदा शिक्षकों को गिफ्ट देते हैं जिसमें वह पैन या कोई ऐसा उपहार जो उन्हें जिंदगी भर अपने शिष्य की याद दिलाते रहे, उनके प्रति लिखी गई कुछ अच्छी बातें अपनी भावनाएं ग्रीटिंग कार्ड्स बनाकर देते हैं, फ्लावर्स देकर अपना प्यार देते हैं। कई सारे सांस्कृतिक और पारंपरिक कार्यक्रमों का भी आयोजन कराया जाता है, गीत संगीत नृत्य होता है, छात्र अपने पसंदीदा शिक्षकों की नकल उतारते है। शिक्षक दिवस के दिन एक तरह से हम कहें तो छात्र अपने गुरुओं की पूरी सेवा करते है। इस दिन अगर कोई शिक्षक अपने छात्र से कोई चीज मांग ले तो छात्र मना नहीं कर सकता। यह वह दिन होता है जब शिष्य अपने शिक्षक के साथ सभी मनमुटाव और गिले-शिकवे भुलाकर उनके योगदान की सराहना करते है। आप उन्हें बताते हैं कि आपके जीवन में उनकी कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस दिन सभी स्टूडेंट अपने शिक्षकों का मान बढ़ाते हैं, उन्हें स्पेशल महसूस कराते हैं, उन्हें खुश कराने का हरसंभव प्रयास कराते हैं। इस दिन की शुरुआत डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद करके की जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षकों को उनके काम और योगदान के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया जाता हैं। 

क्या है इसका महत्व? 
 
हमारे देश में वर्ष 1962 से 5 सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।शिक्षक दिवस का एक अलग महत्व होता है क्योंकि एक शिक्षक ही अपने ज्ञान के प्रकाश से छात्र के जीवन के अंधेरे को दूर करता है, उसके उज्जवल भविष्य का दीप प्रज्वलित करता है। महान यूनानी दार्शनिक ने कहा था, "वह लोग ज्यादा सम्मान के हकदार होते हैं जो बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं क्योंकि माता-पिता सिर्फ बच्चों को जन्म देते हैं जबकि शिक्षक उसे जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं, उसे एक अच्छा और गुणवान व्यक्ति बनाते है। शिक्षक दिवस पर शिक्षकों के लिए ही नहीं अपितु शिष्य के लिए भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दिन वह अपने गुरुओं के प्रति अपनी भावनाएं और प्यार व्यक्त करते हैं, उन्हें गौरवान्वित और सम्मानित महसूस कराते हैं। शिक्षक हमें सही गलत और गलत का अंतर और अर्थ समझाते है। एक शिक्षक ही होता है जो आपको आपकी सफलता के मार्ग तक तो पहुंचाता ही है बल्कि हर एक सीढ़ी पर आपका हाथ पकड़ कर आपको उसे हासिल कराने में मदद करता है। एक शिक्षक ही आपका मार्गदर्शन सर आपके भविष्य का निर्माण करता है। शिक्षक चाहें तो अपने शिष्य का भविष्य बना भी सकता है और अगर ठान ले तो बिगाड़ भी सकता है। गुरु हमें एक विद्वान और आदर्श नागरिक बनाने के लिए प्रेरित करता है।जब कभी भी आप हार मान थक के बैठ जाते हैं तो एक शिक्षक ही तो होता है जो आपको दोबारा उठने और लड़ने के लिए प्रेरित करता है।एक शिक्षक का स्थान भगवान के समान होता है जिससे संबंधित एक श्लोक आप बचपन से सुनते आ रहे होंगे:

गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा:
गुरु साक्षात परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः

अर्थात गुरु भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव के समान है, गुरु सभी देवों में सबसे श्रेष्ठ गुरु ब्रह्मा के समान है और ऐसे गुरु को हम साक्षात नमन करते हैं।

भारत समेत इन देशों में भी मनाया जाता है शिक्षक दिवस:

शिक्षक दिवस अकेले भारत में ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों में मनाया जाता है, जिसमें चीन से लेकर, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अल्बानिया, इंडोनेशिया, ईरान, मलयेशिया, बार्सिलोना और पाकिस्तान जैसे देश तक शामिल है। हालांकि हर देश में इस दिन को मनाने की तारीख और अंदाज अलग-अलग होता है जैसे कि- चीन में 10 सितंबर, अमेरिका में 6 मई, ऑस्ट्रेलिया में अक्टूबर के लास्ट फ्राइडे, जेसन में 15 नवंबर और पाकिस्तान में 5 अक्टूबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।ओमान, सीरिया, मिस्र, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, सऊदी अरब, अल्जीरिया, मोरक्को और कई इस्लामी देशों में 28 फरवरी को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

बदलते समय ने बदला गुरु और शिष्य के बीच का रिश्ता:

आप इस बात से भलीभांति परिचित होंगे कि समय ने गुरु और शिष्य के बीच एक दरार डाल दी है। आज के दौर में गुरु शिष्य का रिश्ता उतना मजबूत और गहरा नहीं रहा जितना पहले था। पहले के जमाने में यह समझ लीजिए 25-30 वर्ष पहले शिष्य खुद गुरु के पास शिक्षा मांगने जाते थे गुरु मना कर देता था तो भी उनका पीछा नहीं छोड़ते थे और आज के इस आधुनिक युग में छात्र टीचर्स से दूर भागते हैं शिक्षा लेना तो दूर की बात। इस बदलाव के लिए सिर्फ छात्रों का ही दोष नहीं है अपितु शिक्षकों की भी उसमें उतनी ही बराबरी की भूमिका है। इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि आधुनिकता ने गुरु और शिष्य के संबंध पर एक गहरी चोट करी है। आज के शिक्षक खुद आगे चलकर छात्रों से कहते हैं कि प्रश्न के उत्तर के लिए गूगल कर लेना, इसे घर से बढ़कर आना, कुछ शिक्षक तो क्लास रूम में खुद छात्रों के सामने मोबाइल खोलकर उसमें से देखकर पढ़ाते हैं जिससे कहीं ना कहीं किताबी ज्ञान किनारे हो गया है। पहले के गुरु दृढ़ संकल्प थे कि उन्हें अपने छात्र का भविष्य उज्जवल बनाना है, उनका ज्ञान सिर्फ उस 4 बाय 4 के क्लासरूम तक ही सीमित नहीं था अपितु जहां पर भी उन्हें कोई भी छात्र मिल जाए वह वहीं पर उसे कुछ ना कुछ सीख जरूर देते थे, अपने छात्र के भविष्य के लिए चिंतित रहते थे।लेकिन आज के युग में इसमें काफी बदलाव आ चुका है। आज शिक्षक और शिष्य का रिश्ता बस क्लासरूम तक ही सीमित रह गया है, बाहर तो वह एक दूसरे की शक्ल भी नहीं देखना चाहते जिसके चलते गुरु शिष्य संबंध नीचे गिरता जा रहा है। परंतु इन सब के बाद भी आज भी कई ऐसे शिक्षक और शिष्य मौजूद हैं जो गुरु शिष्य के संबंध को ऊंचाइयां दे रहे हैं। भारत में प्राचीन काल से गुरु शिष्य के रिश्ते को एक अलग ही नजरिए से देख जाता है। एक तरफ जहां गुरुकुल बीते ज़माने की बात हो गई जिसका नाम आज के जमाने में तो विलुप्त हो चुका है तो वही आज भी कुछ ऐसे छात्र हैं जिनके लिए गुरु का मान और सम्मान सबसे ऊंचा है और उनकी सेवा ही उनका परम धर्म है। आज भी कई ऐसे शिक्षक हैं जो अपने छात्रों को अपने बच्चों के समान या मैं कहूं तो उनसे भी ज्यादा लाड़ दुलार प्यार से पढ़ाते और समझाते है। आज भी यदि किसी गुरु शिष्य का उदाहरण दिया जाता है तो उसमें सबसे पहले गुरु द्रोण और एकलव्य का उदाहरण दिया जाता है, कृष्ण और अर्जुन के बीच के गुरु-शिष्य के रिश्ते की दुहाई दी जाती है। आज के इस आधुनिक युग ने कहीं ना कहीं गुरु और शिष्य के बीच में दरार पैदा कर दी है, गुरु-शिष्य की परंपराओं में बड़ा बदलाव ला दिया है। पहले शिक्षा देने वाले शिक्षक को गुरु कहा जाता था लेकिन आज विद्यार्थियों को अपने शिक्षक को गुरु कहने में भी शर्म आती है। आज कहीं ना कहीं छात्रों के अंदर अपने गुरु के प्रति संवेदना और सम्मान भावना खत्म हो गई है क्योंकि आज की शिक्षा व्यवसायिक हो गई है।पहले शिष्य अपने गुरुजनों से गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा हासिल करना चाहते थे लेकिन आज के छात्रों को संस्कारी और नैतिकता वाली शिक्षा की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह चाहते हैं की उनका गुरु उन्हें उनके तरीके से पढ़ाई जो वह पढ़ना चाहते हैं उसे पढ़ाए जोकि कभी मुमकिन नहीं हो सकता। इसके पीछे का कारण कहीं ना कहीं नई शिक्षा नीति और जिस तरह से कुछ सालों में शिक्षा की नीति और व्यवस्था में जो बदलाव आया है वह माना जा सकता है। आज के छात्र बिना पढ़े लिखे, बिना मेहनत किए शिक्षा हासिल करना चाहते हैं, उन्हें स्पून फीडिंग की आदत हो गई है।पहले गुरु और शिष्य एक साथ काफी समय व्यतीत करते थे लेकिन आज वह दौर है जहां छात्र अपने शिक्षक से ज्यादा अपना समय ट्यूशन, कोचिंग सेंटर, मोबाइल, चैटिंग और दोस्तों को देते है। आज कुछ ऐसे शिक्षक हमारे बीच हैं जोकि छात्रों को एक विचारधारा से जोड़ना चाहते हैं फिर चाहे वह वामपंथी विचारधारा हो या कट्टरपंथी विचारधारा, कहीं ना कहीं वह अपने छात्रों के बीच भेदभाव करने लगे हैं और जिस भी शिक्षक के मन के अंदर तेरा मेरा का भाग आ जाए वह कभी भी एक अच्छा शिक्षक नहीं कहलाता। स्कूल, कॉलेज, ट्यूशन, कोचिंग सेंटर ने गुरुकुल और विश्वविद्यालयों की जगह ले ली है इसलिए आज वह विलुप्त होने की कगार पर खड़े है। आज गुरु और शिक्षक की जगह सर और मैडम ने ले ली है। यह एक कड़वा सच है कि आज शिक्षा एक व्यवसाय बन गया है इसलिए भी गुरु और शिष्य की परंपराओं में गिरावट आई है। पहले शिष्य अपने गुरु के हर एक आदेश का पालन करते थे लेकिन आज के युग में इतना आज्ञाकारी छात्र मिलना थोड़ा मुश्किल है। जब गुरु द्रोण ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांगा तो एकलव्य ने बिना सोचे समझे एक पल में अपना उठा काटकर अपने गुरु के चरणों में समर्पित कर दिया लेकिन आज के युग में ऐसे छात्रों का मिलना सपने जैसा प्रतीत होता है, आज के छात्रों में इतना समर्पण भाव कहां। आज के छात्रों को अपने गुरु की हर बात उल्टी ही लगती है, टीचर बोलते कुछ और है छात्र समझते कुछ और हैं, टीचर चिल्ला-चिल्ला कर थक जाता है पर छात्र उन्हें अनदेखा अनसुना कर देते है। पुराने जमाने में जहां गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया था तो वही आज के छात्र अपने गुरु को उनके नाम, उपनाम से बुलाते हैं, उन्हें चिढ़ाते हैं, उनका मजाक बनाते है। आज के स्मार्ट लड़के शिक्षक की शिक्षा, बोली और समझाने के तरीके पर प्रश्न तो उठाते हैं साथ ही उनकी क्षमता और योग्यता पर भी शक करते है।1990 के बाद से व्यवसायिक शिक्षा का दौरा शुरू हुआ, जो अब महज एक व्यवसाय बनकर रह गया है, आसान भाषा में कहें तो आज शिक्षा शिक्षा नहीं बल्कि व्यापार हो गया है। आज हमें गुणवत्ता शिक्षा लेने के लिए प्रशिक्षण नहीं अपितु उसे हासिल करने के लिए उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। इसी कारण से गुरु और शिष्य के रिश्ते का लोप हो गया है।पहले शिक्षक सेवाभाव से पढ़ाते थे और आज के शिक्षक व्यावहारिकता भाव से पढ़ाते है। यही कारण है कि अब छात्र अपने गुरूओं का सम्मान करने से कतराने लगे हैं। यह एक अथाह सत्य है कि एक तरफ जहां आधुनिक तकनीक ने शिक्षा को आसान बनाया तो वही इसने गुरु और शिष्य के रिश्ते पर नकारात्मक प्रभाव भी डाला है। एक तरफ जहां हम गुरु द्रोण और भगवान श्री कृष्ण जैसे गुरुओं की मांग करते हैं तो उसके लिए एकलव्य और अर्जुन जैसा छात्र होना भी जरूरी हैं।