बच्चों का बिगड़ता मानसिक स्वास्थ्य: कोरोना महामारी के दौरान एक और चिंता

By Career Keeda | Jul 14, 2020

कोरोना महामारी ने इस वक्त सारे संसार को अपनी चपेट में ले रखा है। हर रोज़ आत्महत्या या मानसिक अवसाद के मामले सामने आ रहे हैं। ये और कुछ नहीं बल्कि मानसिक अस्वस्थता (Mental Illness) के ही अलग अलग रूप हैं। इनसे बड़े ही नहीं बल्कि छोटे बच्चे भी प्रभावित हो रहे हैं। घर में हर समय बंद रहने से और किसी से भी न मिलने-जुलने की वजह से बच्चो में तनाव बढ़ता जा रहा है।  ज़ाहिर हैं ये आने वाले समय में एक चिंता का विषय होगा।


2020 की शुरुआत में, बच्चों पर lockdown का प्रभाव जानने के लिए, चीन के वुहान और हुआंग्शी शहरों में कुछ बच्चों पर एक अध्ययन किया गया था। ये अध्ययन 6 से 10 वर्ष की आयु के तक़रीबन 1784 बच्चों पर किया गया था। 3 महीने के इस अनुसन्धान में 23 प्रतिशत बच्चों में अवसाद यानि Depression के लक्षण देखे गए और 12 प्रतिशत में चिंता यानि Anxiety के। ये आंकड़े सामान्य स्थिति के आंकड़ों से कहीं ज़्यादा थे।


शोधकर्ताओं के मुताबिक, आंकड़ों में ये बढ़त सिर्फ इसलिए नज़र आयी क्योंकि बच्चों की बाहरी और सामाजिक गतिविधियां बिलकुल बंद हो चुकी थीं। रिसर्च में ये भी सामने आया की 12 प्रतिशत बच्चे ऐसे थे जो कोरोना से बहुत ज़्यादा प्रभावित हुए थे और वो इतने निराशावादी हो चुके थे की उन्हें लगता था की उन्हें ये बीमारी अपनी चपेट में आसानी से ले लेगी। अवसाद और चिंता के सबसे ज़्यादा लक्षण इन्हीं बच्चों में नज़र आए।


बच्चों में मानसिक विकार क्या होते हैं ?
बच्चे जब आयु अनुसार मानसिक विकास में देरी या विघटन दिखाए तो वो मानसिक विकार हो सकता है। हर बच्चे में मानसिक विकार अलग तरीके से नज़र आता है। जहाँ कुछ बच्चे बहुत चिड़चिड़े हो जाते हैं तो वहीं कुछ बच्चों में उनकी रोज़मर्रा की गतिविधियों की तरफ अत्यधिक उद्दासीनता देखी गयी है।


कुछ गंभीर हालातों में ये भी देखा गया है कि बच्चे खुद को या दूसरों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते हैं। ऐसे हालत में बहुत ज़रूरी है कि बच्चे के माता-पिता अधिक सतर्क रहें और ज़रूरत पड़ने पर किसी Counselor  या फिर किसी चिकित्सक की सलाह लें।


बच्चों में मानसिक विकार के क्या लक्षण होते हैं ?
ऐसे बहुत से चेतावनी भरे संकेत होते हैं जिन पर माता-पिता को गौर करना चाहिए, खासकर अगर बच्चे का शारीरिक विकास भी प्रभावित हो रहा है या फिर बच्चा खुद को या किसी और को नुकसान पहुंचाने की बात कर रहा हो। ये मानसिक विकार की चरम सीमा कहलाती है। बच्चे के व्यव्हार में अगर ऐसे गंभीर लक्षण बहुत ज्यादा नज़र आते हों तो माता-पिता को बिना विलम्ब के किसी विशेषज्ञ या specialist से संपर्क करना चाहिए। ऐसे सभी लक्षण नीचे दिए गए हैं -


1) खुद को नुकसान पहुँचाना या खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचाने की बातें करना
2) बेचैनी या अति सक्रियता
3) निद्रा विकार
4) रोज़मर्रा के कार्यों को करने में परेशानी आना
5) स्कूल में या एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटीज में ख़राब प्रदर्शन
6) चिड़चिड़ापन
7) वजन कम होना
8) खाने-पीने में अरुचि
9) आत्महत्या की बातें या विचार
10) नाउम्मीदी
11) अकारण पेट में या सर में दर्द रहना
12) ध्यान लगा कर काम करने में परेशानी होना
13) हर वक्त निराशावादी विचार या अत्यधिक उदास रहना


यहाँ ये भी समझना ज़रूरी है कि माता-पिता मानसिक विकारो को सामाजिक वर्जना से न जोड़ें। मानसिक विकार, शारीरिक विकारों की तरह ही बिलकुल ठीक किये जा सकते हैं और मानसिक विकार का अर्थ पागलपन नहीं होता। उपरोक्त लक्षणों के अलावा बच्चे की और भी ऐसी रोज़ाना की गतिविधियां हो सकती हैं जो सामान्य से भिन्न लग रही हों। अगर ऐसा हो तो माता-पिता उन पर भी ज़रूर गौर करें।


बच्चों में हर मानसिक बदलाव का मतलब विकार नहीं होता। बच्चों के विकासात्मक उम्र में उनकी शारीरिक संरचना के साथ-साथ उनके स्वाभाव और भावनाओ में भी बदलाव आते रहते हैं। इसलिए हर बदलाव को विकार न समझा जाये। ऐसे में माता-पिता को बहुत गौर से देखने की ज़रूरत है की क्या सामान्य है और क्या नहीं। कई बार किसी बड़ी चिकित्सा की ज़रूरत नहीं होती बल्कि घर पर की गयी काउंसलिंग भी काफी होती है। ज़रूरत पड़ने पर किसी counselor से भी परामर्श ले सकते हैं। कई बार तो बाहर के हालात या परिवार के सदस्यों के व्यव्हार की वजह से भी बच्चे तनाव में आ जाते हैं। ऐसे हालात में ज़रूरी हैं की counselor या specialist  के पास जाने से पहले, माता-पिता बच्चों को ऐसी स्थितियों से दूर करें।


अगर बच्चे में मानसिक विकार नज़र आये तो क्या करें ?
सबसे पहले ज़रूरी है कि घबराएं नहीं। मानसिक विकार किसी भी शारीरिक विकार की तरह सही किये जा सकते हैं और ऐसे हालात में अपने बच्चों को बिलकुल भी असामान्य न समझें। अगर आपको अपने बच्चे में मानसिक विकार नज़र आएं तो आपको नीचे दिए गए तरीके के अनुसार चलना चाहिए-
सबसे पहले बच्चे के स्वभाव या हरकतों में किसी भी तरह की असमानता को नोट करें। बच्चे के शिक्षकों से भी बात करें, बच्चा जिन बच्चों के साथ खेलता है, उनके खेल के समय की गतिविधयों को भी ध्यान से देखें। गौर करें कि क्या बच्चा कुछ असामान्य तरीके से पेश आ रहा है? इसे भी नोट करें। ऐसा आपको कम से कम 2 या 3 हफ्ते तक ध्यान देना चाहिए। एक आधे बदलाव को देखते हुए किसी निष्कर्ष पर न पहुंचें। अगर व्यव्हार में बहुत ज़्यादा बदलाव नज़र आएं तो किसी Counselor से परामर्श लें। ये ध्यान रहे की काउंसलिंग में आपको भी अपनी कुछ गतिविधियों में बदलाव लाने का सुझाव दिया जा सकता है। कई बार counselor आपको बच्चे को किसी नयी एक्टिविटी में व्यस्त रखने का भी सुझाव दे सकते हैं। ऐसे में Counselor ही आपको बताते हैं की कैसे और किन एक्टिविटीज से आप बच्चे में फिर से सामान्य रूचि पैदा कर सकते हैं। ज्यादा गंभीर स्थिति में आपको विशेषज्ञ के पास जाने की भी सलाह दी जा सकती है।


बच्चे के साथ किस तरह का व्यव्हार न करें?
1) आपका बच्चा अगर किसी मानसिक विकार से पीड़ित हो तो उसे डांटें या मारें नहीं, ऐसे में उसका खुद पर नियंत्रण नहीं होता।
2) कभी भी बच्चे के मानसिक विकार को लेकर अफवाह न फैलाएं।  
3) बच्चे को बंद जगह पर न रखें या ज़बरदस्ती अंदर रखने की कोशिश न करें।
4) घबराएं नहीं।
5) बिना डॉक्टर की सलाह के अपने आप बच्चे को कोई दवा न दें।
6) बच्चे पर किसी तरह का दबाव न डालें।


ऐसे में बच्चे के साथ कैसा व्यव्हार करना चाहिए
बच्चे को बहुत प्यार दें। उससे बातें करें। उसके साथ खेलें। अगर बच्चा अपनी कोई भी भावना आपके समक्ष ज़ाहिर करना चाहता है तो उसे प्यार से सुनें। कई बार माँ-बाप का प्यार और उनके साथ समय बिताना ही सबसे बड़ा इलाज होता है।

Komel Chadha
Solutions Coach | Mental Health Counsellor | Public Speaker (www.komelchadha.com
)